मदिरा सवैया
मदिरा सवैया
पायल की सुन गूँज चला मन झूम उठा अपने हिय में।
चाहत में बस एक यही मन लाग रहे अपने पिय में।
देख बसे मन प्यार बहे झुनकार सजे अपने जिय में।
आनन घूँघट से छलके कटि देश खिले मन के त्रिय में।
मत्तगयंद/मालती सवैया
पावन पावस वायु बहे झकझोर चले पुरुवा सरसाता।
कामिनि नाचत कूदत गावत ढोल बजावत देख सुहाता।
मेघ चला जल लेय घुमा उमड़ा-घुमड़ा चहुँओर बहाता।
दादुर बोलत पाय अगाध सरोवर नीर अपार विधाता।
Renu
23-Jan-2023 03:34 PM
👍👍🌺
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